अध्याय ३: श्लोक ३-४; कर्म अपरिहार्य है।

Chapter 3: Verse 3-4

श्रीभगवानुवाच।
 Lord Krishna said:

Subject: The Two-fold Path

विषय: द्विस्तरीय मार्ग 


लोकेऽस्मिन् द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥३-३॥

 
O Sinless One, as I have already told you earlier, there is a two-fold path; the path of knowledge for the samkhyas (the men of realization) and the path of action for the yogis (the men of action).

Lesson: Knowledge and action are complementary to each other. Steadfastness in knowledge is suitable for being practiced through a process of action (karma yoga).

श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप अर्जुन! इस संसार में दो प्रकार की निष्ठा (साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम 'निष्ठा है।) मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से (माया से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं, ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहने का नाम 'ज्ञान योग है, इसी को 'संन्यास, 'सांख्ययोग आदि नामों से कहा गया है।) और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से (फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवदर्थ समत्व बुध्दि से कर्म करने का नाम 'निष्काम कर्मयोग है, इसी को 'समत्वयोग, 'बुध्दियोग, 'कर्मयोग, 'तदर्थकर्म, 'मदर्थकर्म, 'मत्कर्म आदि नामों से कहा गया है।) होती है॥३॥

Subject: Action is Unavoidable

विषय: कर्म अपरिहार्य है।


न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥३-४॥

One does not become Action- less (free from the bondage of action) merely by absconding from action. Also, none attains` Perfection` by renunciations of action.

मनुष्य न तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्मता (जिस अवस्था को प्राप्त हुए पुरुष के कर्म अकर्म हो जाते हैं अर्थात फल उत्पन्न नहीं कर सकते, उस अवस्था का नाम 'निष्कर्मता है।) को यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि यानी सांख्यनिष्ठा को ही प्राप्त होता है। ॥४॥

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