न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥३२॥
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥३३॥
जीवन से भी क्या लाभ है? हमें जिनके लिये राज्य, भोग्य और
सुखादि अभीष्ट हैँ, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग
कर युद्ध में खडे़ हैँ ॥३२-३३॥
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥३२॥
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥३३॥
O Krishna! what of what value are kingdoms, what value is living for happiness,
if they; for whom our kingdom, material pleasure and happiness is desired.
Preceptors, fatherly elders, sons and grandfatherly elders, maternal uncles,
fathers' in law grandsons, brothers' in law and relatives are all present in this
battle field.
हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही।
हे गोविन्द! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही।
जीवन से भी क्या लाभ है? हमें जिनके लिये राज्य, भोग्य और
सुखादि अभीष्ट हैँ, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग
कर युद्ध में खडे़ हैँ ॥३२-३३॥