चतुर्थोऽध्यायः "ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः" श्लोक ०१-०२: Chapter 4 - Verse 01-02

श्रीभगवानुवाच।
Lord Krishna said:




विषय: ज्ञान मे महान व्यक्तियों का सम्मिलन
Subject: Participation of Great Persons in Knowledge


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्श्वाकवेऽब्रवीत्॥४-१॥


I taught this (karma) yoga, the eternal science of action to Sun: he told this to Manu (his son) and Manu taught it to Ikshvaku (his son).

श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। ॥4-01॥


Lesson: The involvement/ participation of great persons in a scientific pursuit or knowledge (teaching) demonstrate its importance and prevalence.


विषय: रीति रिवाजों की विलुप्ति
Subject: Disappearance of Traditions/Practices

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप॥४-२॥


Thus taken care of or passed over in regular succession, this (Yoga of action) was known to royal sages. But, O Chastiser of Enemies, with the passage of time this (Yoga of action) has disappeared from this world.

हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया। ॥4-02॥


Lesson: With the passage of time even the best of the traditions or practices disappear.

अध्याय ३ श्लोक ४२-४३ इच्छा - अजेय शत्रु

Chapter 3: Verse 42-43

विषय: इच्छा - अजेय शत्रु

Subject: Desire — The Invincible Enemy

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥३-४२॥


The senses are said to be superior (to the physical / gross body), superior is the mind to the senses, the intellect is superior to the mind and He (the Self) is even superior to the intellect.

इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी पर बुध्दि है और जो बुध्दि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है। ॥४२॥

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥३-४३॥

Thus, knowing the Self, being superior to intellect, (after) purifying the mind (by the intellect) and having established in the Self, O Mighty Armed, you slay this invincible enemy in the form of desire (kama). Kill this  great enemy with the sword of knowledge

Lesson: The Self- embodied is superior to the gross, subtle and the casual body.Conquer the invincible enemy, in the form of desire, by completely establishing in the Self, having purified the mind by the intellect (true knowledge of the Self).

इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल। ॥४३॥

-: इति तृतीयोऽध्याय :-

अध्याय ३ श्लोक ४०-४१

Chapter 3: Verse 40-41

Subject: The Abode of Desire

विषय: इच्छाओं का घर

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥३-४०॥
 
The senses, the mind and the intellect are said to be the places where it (the desire) dwells [said to be the seat of desire or lust]. By covering (veiling) knowledge with the help of these (sense-organs, the mind, and the intellect) this one (desire) deludes the embodied being (the Self-in-dwelling).

इन्द्रियां, मन और बुद्धि- ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है। ॥४०॥


Lesson: Desire covers the wisdom and the Self of a person through senses, the mind and the intellect.

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Subject: Desire and Wisdom

विषय: इच्छा एवं ज्ञान

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥३-४१॥

 
Therefore, O best of the Bharata’s, first by restraining sense-organs, you verily reject (renounce) this sinful (desire / kama=kamana), the destroyer of knowledge and wisdom (Self-Realisation).

इसलिए हे अर्जुन! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी ’काम’ को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल। ॥४१॥

Lesson: Desire is the destroyer of knowledge and wisdom. It needs to be rejected (renounced) by restraining (regulating) the senses.