अध्याय २:श्लोक ११-१२।

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥११॥

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥१२॥

The Supreme Personality of Godhead said: - While speaking learned words, you are mourning for what is not worthy of grief. Those who are wise lament neither for the living nor for the dead.

Never was there a time when I did not exist, nor you, nor all these kings; nor in the future shall any of us cease to be.

श्रीभगवान बोले:- हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्योंके लिये शोक करता है और पण्डितोंके-से वचनों को कहता है; परन्तु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये है उनके लिये भी पण्डित जन शोक नहीं करते।

न तो ऐसा ही है मैं किसी काल में था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।

अध्याय २:श्लोक ९-१०।

सञ्जय उवाच :-


एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।

न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥९॥

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।

सेनयोरूभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः॥१०॥


Sanjaya said :-

Having spoken thus, Arjuna, chastiser of enemies, told Krishna, “Govinda, I shall not fight,” and fell silent. O descendant of Bharata, at that time Krishna, smiling, in the midst of both the armies, spoke the following words to the grief-stricken Arjuna.


सञ्जय बोले :-

हे राजन! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अन्तर्यामी श्री कृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फ़िर श्री गोविन्द भगवान से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये। हे भरत वंशी धृतराष्ट्र! अन्तर्यामी श्री कृष्ण महाराज दोनो सेनाओं के बीच में शोक करते उस अर्जुन को हंसते हुए-से वचन बोले॥९-१०॥

अध्याय २:श्लोक ७-८।

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहंशाधि मां त्वां प्रपन्नम्॥७॥

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्॥८॥


Now I am confused about my duty and have lost all composure because of miserly weakness. In this condition I am asking You to tell me for certain what is best for me. Now I am Your disciple, and a soul surrendered unto You. Please instruct me.

I can find no means to drive away this grief which is drying up my senses. I will not be able to dispel it even if I win a prosperous, unrivaled kingdom on earth with sovereignty like the demigods in heaven.

इसलिये कारयता रूप दोष से उपहत हुए स्वाभाव वाला तथा धर्म के विषय मे मोहित चित्त हुआ मै आपसे पूछता हूं कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूं, इसलिये आपके शरण हुए मुझ को शिक्षा दीजिये॥७॥

क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्यसम्पन्न राज्य को और देवताओं के आधिपत्य को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नही देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले शोक को दूर कर सके॥८॥