अध्याय २: श्लोक ५०

Chapter 2: Verse 50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥२-५०॥

A person with evenness of mind is not attached to the fruits of good or bad deeds. He casts off the virtue and sin in this world alone. Therefore, devote yourself to (karma) yoga (with evenness of mind/equanimity). Performing duty with efficiency is yoga.
Lesson: By performing duty with evenness of mind a person accomplishes his job with greater efficiency and skill.

समबुध्दियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है। ॥५०॥

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