यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥१५॥
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभि: ॥१६॥
O Noblest of Men, that person of judgment equipoised in happiness and distress, who can not be disturbed by these; is certainly eligible for liberation.
In the unreal there is no duration and in the real there is no cesation; indeed the conclusion between both of the two has been analyzed by knowers of the truth.
क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दु:ख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है।
असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है।