चतुर्थोऽध्यायः "ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः" श्लोक ०३-०४: Chapter 4 - Verse 03-04

Chapter 4: Verse 03-04

Subject: Eligibility for Knowledge

विषय: ज्ञान के लिये योग्यता


स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्॥४-३॥

I have told the same ancient knowledge to you because you are My devotee and My friend. This is most mysterious (knowledge).
Lesson: The friends and devotees alone are eligible to receive best of the knowledge.

तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बडा ही उत्तम रहस्य है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है। ॥3॥

अर्जुन उवाच।
Arjuna said:

Subject: Curiosity
विषय: जिज्ञासा

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥४-४॥

Sun was born much earlier than you. How am I to reconcile that you exposed Sun to this Yoga in the beginning of the creation.

अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस बात को कैसे समझूं कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था? ॥4॥

Lesson: Satisfy all your queries/ curiosities before you start following any tradition/practice.

अपनी जिज्ञासाओं को शान्त करने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिये

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