अध्याय १: श्लोक १२, १३।

तस्य सञ्जनयन् हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: ।
सिंहनादं विनद्योच्चै: शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥१२॥

तत: शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥

Then Bhishma, the valiant grandson of Kuru dynasty roaring like a lion, blew his conch shell very loudly for increasing Duryodhana's cheerness. Thereafter conchshells, bugles, trumpets, kettledrums and cow-horns, suddenly all were sounded simultaneously and that combined sound became tumultuous.

कौरवों में वृद्ध बडे प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़के समान गरजकर शंख बजाया।इसके पश्चात शंख और नगाडे़ तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बडा भयंकर हुआ ॥१२-१३॥