अध्याय १: श्लोक ४६-४७।

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्॥४६॥
सञ्जय उवाच:-
एवमुक्तवार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥४७॥

ओ३म् तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे‍ऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः।

Even if the sons of Dhritraashtra armed with weapons in hand slay me unarmed and unresisting on the battlefield, that would considered better for me.
Sanjaya said:-
Thus having spoken Arjuna cast aside his bow and arrows in the battlefield and sat down on the seat of the chariot, with mind overwhelmed with deep sorrow.
Thus ends the Shrumadbhagvadgita 'Chapter One' entitled "Vishaad Yoga: Lamenting the Consequences of the War".

यदि मुझ शस्त्र रहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र, हाथ मे लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण मे मार डालें तो वह मरना भी मेरे लिये अधिक कल्याणकारक होगा॥४६॥
सञ्जय बोले:-
रणभूमि में शोक से उद्विग्न मनवाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाणसहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये॥४७॥
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता का श्री कृष्ण-अर्जुन वार्तालाप युक्त विषाद-योग नामक प्रथम अध्याय समाप्त होता है।

No comments:

Post a Comment