अध्याय २:श्लोक ३-४।

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयद्दौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥३॥
अर्जुन उवाच:-

कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभिः प्रति योत्स्यामि पूजाहार्वरिसूदन॥४॥

O son of Pritha, do not yield to this degrading impotence. It does not become you. Give up such petty weakness of heart and arise, O chastiser of the enemy.

Arjuna said:
O killer of enemies, O killer of Madhu, how can I counterattack with arrows in battle men like Bhishma and Drona, who are worthy of my worship?

इसलिये हे अर्जुन (पृथ पुत्र) कायरता तुम पर शोभा नही देती, हे परन्तप हृदय की तुच्छ दुर्बलता को छोड़्कर युद्ध के लिये खडा़ हो जा॥३॥

अर्जुन बोले:-

हे मधुसूदन! मैं रण भूमि मे किस प्रकार बाणों से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लडूंगा? क्योंकि हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं॥४॥

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