अध्याय २: श्लोक १-२।

सञ्जय उवाच:-
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥१॥

श्रीभगवानुवाच:-

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥२॥

Sanjaya said:-

Seeing Arjuna full of compassion and very sorrowful, his eyes brimming with tears, Madhusudana, Krsna, spoke the following words.
The Supreme Person said:-

My dear Arjuna, how have these impurities come upon you? They are not at all befitting a man who knows the progressive values of life. They do not lead to higher planets, but to infamy.

सञ्जय बोले:-
उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने ये वचन कहा॥१॥

श्रीभगवान बोले:-

हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है॥२॥

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