अध्याय २:श्लोक ११-१२।

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥११॥

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥१२॥

The Supreme Personality of Godhead said: - While speaking learned words, you are mourning for what is not worthy of grief. Those who are wise lament neither for the living nor for the dead.

Never was there a time when I did not exist, nor you, nor all these kings; nor in the future shall any of us cease to be.

श्रीभगवान बोले:- हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्योंके लिये शोक करता है और पण्डितोंके-से वचनों को कहता है; परन्तु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये है उनके लिये भी पण्डित जन शोक नहीं करते।

न तो ऐसा ही है मैं किसी काल में था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।

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