अध्याय २: श्लोक १९-२०

Chapter 2: Verse 19-20

Subject: The Soul

विषय: आत्मा

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥१९॥

न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥२०॥



One who considers that he is the slayer of this (the Soul), and the other who presumes that it (the Soul) is dead, both are ignorant because none can slay the soul, nor it is slain.

This one (the soul) is neither born, nor does it die at any moment. It does not come into being or cease to exist. It is unborn, eternal, everlasting and primeval. It does not perish when the body is perished.


Lesson: The soul is beyond the limits of time as well as birth and death. It is imperishable. None can slay it, nor is it slain.

जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है। ॥१९॥

यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता। ॥२०॥

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