अध्याय २: श्लोक १७-१८

Chapter 2: Verse 17-18

अविनाशि तु तद्विध्दि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥१७॥

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥१८॥

But know that by whom this total body is pervaded, is indestructible. No one is able to cause the destructions of this imperishable soul [17].

The embodied soul is eternal in existence, indestructible and infinite only the material body is factually perishable, therefore Fight...O Arjun! [18].

नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्यवर्ग व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है। ॥१७॥

इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर। ॥१८॥

2 comments:

Pratik Pandey said...

धीरे-धीरे ही सही, गाड़ी आगे बढ़ रही है :)

RC Mishra said...

जब तक गाड़ी रहेगी..चलती रहेगी :)

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