अध्याय १: श्लोक ३२, ३३।

न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥३२॥

येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥३३॥

O Krishna! what of what value are kingdoms, what value is living for happiness,
if they; for whom our kingdom, material pleasure and happiness is desired.
Preceptors, fatherly elders, sons and grandfatherly elders, maternal uncles,
fathers' in law grandsons, brothers' in law and relatives are all present in this
battle field.

हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही।
हे गोविन्द! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और
जीवन से भी क्या लाभ है? हमें जिनके लिये राज्य, भोग्य और
सुखादि अभीष्ट हैँ, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग
कर युद्ध में खडे़ हैँ ॥३२-३३॥

अध्याय १: श्लोक ३०, ३१।

गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥३०॥

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥३१॥

Gaandiva is slippng from my hands and my skin seems burning, O Krishna! I am unable to keep composed, my mind is unsteady and I see the indications of unauspicious omens. I do not see any good in slaying kinsman in this battle.

हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है, और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित सा हो रहा है; इसलिये मैं खडा़ रहने में भी समर्थ नही हो पा रहा हूँ।हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता॥३०-३१॥

अध्याय १: श्लोक २८, २९।

अर्जुन उवाच :-
दृष्ट्वेमं स्वजनं कॄषण युयुत्सं समुपस्थिताम्॥२८॥

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥२९॥


Arjuna said O Krishna, Seeing all these kinsman assembled and ready for battle the limbs of my body are weakening and my mouth is drying up. My whole body is trembling with excitement.

अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र मे डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अङ्ग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है, तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमाञ्च हो रहा है ॥२८-२९॥

अध्याय १: श्लोक २६, २७।

तत्रापश्यत्सिथतान् पार्थः पितृनथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥२६॥

श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेन्योरूभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥२७॥

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।

Thereafter, Arjuna, situated therein could observe could observe in both armies fatherly elders, grand fatherly elders, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grand sons, friends, father in law's and well wishers.

After seeing all his kins present Arjun become overwhelmed with compassion and then stricken by grief spoke...

इसके बाद पृथा पुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं मे स्थित ताऊ-चाचों को दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को पौत्रों को तथा मित्रों को
ससुरों को और सुहृदों को भी देखा।उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोकाकुल होकर बोले...