चतुर्थोऽध्यायः "ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः" श्लोक ०५-०६: Chapter 4 - Verse 05-06

Chapter 4: Verse 05-06

श्रीभगवानुवाच
Lord Krishna said

Subject: Cycles of Birth/Rebirth

विषय: जीवन चक्र या पुनर्जन्म


बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप॥४-५॥

 

O Chastiser of Enemies, many many births you and I have passed through. I remember them all. O Arjuna, but you do not.

श्री भगवान ने कहा – हे परंतप (तपस्या से अपनी इन्द्रियों को वश मे रखने वाला) अर्जुन! मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म हो चुके हैं। तुम उन सबके बारे मे नहीं जानते किन्तु मैं जानता हूँ।

Lesson: Knower of Self alone knows the secret of the cycles of birth/rebirth.

स्वयं को जानने वाला ही जीवन चक्र और पुनर्जन्म के रहस्य को जानता है।

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Subject: Theory of Incarnation

विषय: पुनर्जन्म का सिद्धांत


अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया॥४-६॥


Though I am unborn and Imperishable and though I am the Lord of all creatures, yet, subjugating My own nature, l manifest Myself through My divine potential (free will not per force).

 

मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप का होते हुये, समस्त प्राणियों का होते हुये भी अपनी प्रकृति को वश मे कर के अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।

3 comments:

Pravin Dubey said...

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ndtvexpress said...

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Rajeeva Khandelwal said...

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