अध्याय ३: श्लोक ३२-३३ स्वभाव-प्रकृति एवं कर्म

Chapter 3: Verse 32-33

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः॥३-३२॥


You consider all these foolish persons as doomed who are deluded about all sort of knowledge (rituals, outward practices or worldly knowledge).Carp at My this thought (teaching) and do not practice it (desire less actions).

Lesson: Doomed are those who do not practice desire less actions.

परन्तु जो मनुष्य मुझमें दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझ। ॥३२॥

Subject: Temperament and Action

विषय: स्वभाव-प्रकृति एवं कर्म

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥३-३३॥

 
While performing action, all creatures follow their nature/temperament (nature acquired from constituent qualities). The wise also act in accordance with their nature (although they are beyond hate and aversion). What repression / repressions and restraints can do?

Lesson: People act according to their nature (Constituent qualities).None can change its course. Even repressions and restraints fail to help.

सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं। ज्ञानवान् भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा। ॥३३॥

1 comment:

Asha Joglekar said...

धन्यवाद इस शुभ काम के लिये । सब अगर अपने प्रकृती के अनुसार ही काम करेंगे तो सुधरेगे कैसे ?

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