अध्याय ३: श्लोक १३। समपत्ति का सदुपयोग

Chapter 3: Verse 13

Subject: Use of Wealth

विषय: समपत्ति (धन) का सदुपयोग


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥३-१३॥


The righteous who use the residue of yajana (the sacrifice) are liberated from all sins; but the sinful who prepare food (only) for themselves, without sharing with others, verily eat sin.

Lesson: While consuming wealth (material things) share it with others. Do not hoard it.

यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं। ॥१३॥

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