अध्याय १: श्लोक २२, २३।

यावदेतान्निरीक्षे‍ऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥२२॥

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धेप्रियचिकीर्षवः॥२३॥

So that I (Arjun) Can look upon the warriors arrayed for battle with
whom I have to fight in preparation for combat. Also let me see those
warriors who have assembled here in this battle as well wishers of the
evil minded Duryodhana.

और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युध्द के अभिलाषी इन विपक्षी
योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन
के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खडा़ रखिए।दुर्बुद्धि दुर्योधन का
युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए हैं,
इन युद्ध करने वालों को मैं देखूंगा। ॥२२-२३॥

No comments:

Post a Comment